राष्ट्रीय एकता । “National Unity” in Hindi Language!

1. प्रस्तावना ।

2. राष्ट्रीय एकता का अर्थ ।

3. राष्ट्रीय एकता के तत्त्व ।

4. राष्ट्रीय एकता की बाधाएं ।

5. राष्ट्रीय एकता के उपाय ।

6. उपसंहार ।

विभिन्नता में छिपी हुई है, एकता हमारी ।

भावनाओं में बसी हुई है, एकता हमारी ।

रंग-रूप वेश भाषा की अनेकता में भी है, एकता हमारी ।

है हम पहले भारतवासी बाद में है, हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई ।

1. प्रस्तावना:

भारत एक ऐसा देश है, जहां हिन्दू मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी सभी सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं । इन सभी सम्प्रदायों की अपनी-अपनी संस्कृति है, अलग-अलग भाषाएं हैं । इसकी भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक, भाषायी विभिन्नता को देखकर कुछ लोग इसे उपमहाद्वीप कहकर सम्बोधित करते हैं । यहां विश्व की विभिन्न प्रजातियों के लोग भी निवास करते हैं ।

इस विभिन्नता के बाद भी इसमें एकता की ऐसी सुगन्ध समायी है, जिसका प्रसार समूचे देश में ही नहीं, अपितु विदेश में भी फैला हुआ है ।

2. राष्ट्रीय एकता का अर्थ:

राष्ट्रीय एकता का आशय उस भावात्मक एकता से है, जिसके द्वारा सभी धर्म, जाति, सम्प्रदाय और संस्कृतियां एक दूसरे से बंधी हुई हैं । एकता का यह बन्धन विभिन्नता के होते हुए भी ऐसा अटूट है, जो किसी के तोड़ने से भी कभी न पायेगा ।

यहां के निवासी राष्ट्रहित को अपना हित और राष्ट्र के अहित को अपना अहित समझते हैं । यहां की विभिन्न संस्कृतियों की धारा अनेक मार्गो से होते हुए एकता के समुद्र में जाकर विलीन हो जाती है । जिस तरह रंग-बिरंगे फूलों को मिलाकर एक माला बनती है, एक सुन्दर गुलदस्ता तैयार होता है, वैसी ही सुन्दर यहां की एकता है ।

”जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।” तथा नमो: माता पृथ्वीवै:, अर्थात भारत देश के सभी निवासी अपनी मातृभूमि को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं तथा पृथ्वी को माता मानकर उसे प्रणाम करते हैं । यही प्रणाम भाव उन्हें एक-दूसरे से जोड़े रखता है ।

पृथ्वी माता की सन्तान होने के कारण सभी एक-दूसरे को अपना भाई मानते हैं । अपनी माता की सुरक्षा व उसके गौरव की रक्षा एक पुत्र की तरह करते हैं । वे अपनी मातृभूमि के जातीय गौरव, स्वाभिमान के लिए सदैव प्राण देने को भी तत्पर रहते है ।

3. राष्ट्रीय एकता के तत्त्व:

हमारी राष्ट्रीय एकता की भावना को बनाये रखने वाले प्रमुख तत्त्वों में सर्वप्रथम हमारी संस्कृति का वह आदर्शवादी गुण है, जिसका सूत्र है:

”सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया: ।

सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चिद दु:खभाग्वेत ।।”

हमारे सभी भारतीय धर्मो में प्राणिमात्र के प्रति सदभाव को महत्त्व दिया गया है । राष्ट्रीय एकता के प्रमुख तत्त्वों में राष्ट्रभाषा हिन्दी, राष्ट्रीय प्रतीकों के साथ-साथ साहित्य, संगीत, विभिन्न कलाएं, पत्र-पत्रिकाएं, फिल्मों का महत्त्व भी शामिल है ।

कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हमारा देश भौगोलिक विभिन्नता के होते हुए भी एकता के सूत्र में बंधा हुआ है । प्राचीन समय में इसी एकता को स्थापित करने के उद्देश्य से अश्वमेध और राजसूय हुआ करते थे । विभिन्न धर्म के सन्त-महात्माओं ने यहां के लोगों को हमेशा धार्मिक सद्‌भाव एवं राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ाया है ।

कबीर, जायसी, रहीम, रसखान जैसे साहित्यकारों तथा सूफी कवियों ने हिन्दू और मुस्लिम एकता की भावना को बढ़ाया है । प्रेमचन्द जैसे साहित्यकारों ने उर्दू भाषा को अपनाया, तो रसखान, रहीम, जायसी ने ब्रज और अवधी को अपनाकर धार्मिक सहिष्णुता का परिचय दिया ।

विभिन्न सिक्स धर्मगुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया । वैसे ही हिन्दुओं ने भी सिक्स धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग किया । यहां के मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च सभी धर्म के अनुयायियों के लिए खुले हैं । रामायण तथा महाभारत जैसे धार्मिक अन्यों ने पूरे भारतवर्ष को एकता के सूत्र में बांधे रखा हैं ।

भौगोलिक विभिन्नता के कारण यहां के खानपान, रहन-सहन, रीति-रिवाज की जो विशेषताएं हैं, उनको भी सभी धर्म और जातियों ने आत्मसात किया । सभी धर्म के पर्व और त्योहारों को लोग मिल-जुलकर मनाते      हैं । सभी के खानपान, वेशभूषा, भाषा के प्रति भी यहां सहिष्णुता का भाव है । एक-दूसरे के प्रति यही समानता का भाव ही राष्ट्रीयता का प्रमुख तत्त्व है ।

4. राष्ट्रीय एकता की बाधाएं:

राष्ट्रीय एकता की सबसे प्रमुख बाधा है, साम्प्रदायिकता की भावना । यद्यपि भारत में साम्प्रदायिक एकता कायम है, तथापि इस भावना को तोड़ने वाले अंग्रेज ही थे, जिन्होंने ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति के तहत साम्प्रदायवाद के आधार पर भारत-पाक का विभाजन करा डाला ।

आज हमारे देश में मोटे तौर पर तीन प्रकार की साम्प्रदायिकता में धर्म, जाति तथा भाषा पर आधारित साम्प्रदायिकता देखने को मिलती है । इस साम्प्रदायिकता को सबसे अधिक बढ़ावा देते हैं: राजनीतिक दल । ये राजनीतिक दल नहीं, राजनैतिक दलदल है, जो कुर्सी तथा वोट की राजनीति के लिए सांम्प्रदायिकता का जहर लोगों में घोलते हैं ।

अशिक्षा राष्ट्रीय एकता की एक बड़ी बाधा है । अशिक्षित जनता ऐसे राजनेताओं के बहकावे में आकर साम्प्रदायिक दंगों में लिप्त होकर हिंसा पर उतारू हो जाती है । भिवंडी, मुरादाबाद, उत्तरप्रदेश. गोधरा काण्ड, रामजन्मभूमि तथा बावरी मस्जिद जैसे दंगे कुछ स्वार्थी, कुर्सीलोलुप नेताओं की ही देन हैं । इनमें हानि तो जनता की ही होती है । वहीं राष्ट्रीय एकता को भी खतरा उत्पन्न हो जाता है ।

हमारी राष्ट्रीय एकता को सबसे अधिक बाधा पहुंचाने वाले देश पाकिस्तान तथा चीन हैं । पाकिस्तान ने तीन बार भारत पर आक्रमण करके तथा कश्मीर व पंजाब में आतंकवाद को बढ़ावा देकर इसी राष्ट्रीय एकता को विखण्डित करने का काफी प्रयास किया और अब भी कश्मीर के भोले-भाले नवयुवकों को बहकाकर अपने आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण देकर एकता को तोड़ने के  दुष्चक्र में लगा हुआ है ।

चीन भी भारत में आतंकवादी गतिविधियों को संचालित कर पाकिस्तान का ही साथ दे रहा है । अमेरिका भी भीतर और बाहर से पाकिस्तान को समर्थन देकर भारत की मूलभूत एकता को नष्ट करना चाहता है । गरीबी, बेरोजगारी, जनसंख्या वृद्धि आदि भी राष्ट्रीय एकता के प्रमुख बाधक तत्त्वों के रूप में विशिष्ट कारक हैं ।

5. राष्ट्रीय एकता के उपाय:

राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के प्रमुख उपायों में साम्प्रदायवाद, जातिवाद, भाषावाद, दूषित राजनीति की भावना को दूर करने के साथ-साथ अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी आदि को भी हमें समाप्त करना होगा । धार्मिक सहिष्णुता, भाषायी एकता, जातीय एकता को बढ़ावा देना होगा ।

जाति और धर्म के नाम पर क्षेत्र तथा प्रदेशों के होने वाले बंटवारे को राष्ट्रहित में रोकना होगा । सभी निवासियों को व्यक्तिगत हित की अपेक्षा राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानना होगा; क्योंकि कहा गया है:

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है ।

वह नर नहीं, नर पशु निरा और मृतक समान है ।

तथा राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी के शब्दों में तो-

जो भरा नहीं है भोवों से, बहती जिसमें रसधार नहीं ।

वह हृदय नहीं, पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं ।।

6. उपसंहार:

अनेकता में एकता ही हमारी राष्ट्रीयता की पहचान है । जब तक किसी भी देश के निवासियों में भावात्मक एकता नहीं होगी, तब तक राष्ट्र एकता के सूत्र में कभी बंधा नहीं रह सकता । धर्मनिरपेक्ष भारत देश में एकता की जड़ें बहुत गहरी हैं, किन्तु दूषित राजनीति इसे साम्प्रदायिकता के विष से खोखला करने में लगी है ।

हमारे वीर शहीद देशभक्तों ने आजादी की लड़ाई में धार्मिक एकता का भाव दिखलाते हुए ही अंग्रेजों पर विजय पायी थी । उस मजबूत डोर को हमें टूटने नहीं देना है । हमारी भारतीय संस्कृति की एकता ही हमारी राष्ट्रीयता की नींव है । तभी तो कहा भी गया है कि:

यूनान, मिश्र, रोमा सब मिट गये जहां से,

लेकिन अभी है बाकी नामो-निशां हमारा ।

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,

सदियों दुश्मन रहा सारा जहां हमारा ।